ॐ श्री गुरू चरणकमलेभ्यो नमः ?‍♀?

दूसरा दिन (25 दिसम्बर) को सुबह हम सब दिल्ली से काठगौधाम पहुँचे। वहाँ से कैंची धाम वहाँ थोड़ी देर रूक कर बाबा के दर्शन करने के बाद हम हेडाखान बाबा के मंदिर पहुँचे।वहां पहुँचते ही असीम शांति का एहसास होता है क्योंकि आप प्रकृति की गोद में आ गए होते हैं। वहाँ से पहाड़ों का दृष्य और आकाश में भरे रंग मानो आपकी पूरी दुनिया बस वही पर सिमट गई हो। वहाँ से हम दुनागिरी अपने होटल में पहुँचे जहां से हमारी अगले दिन की यात्रा शुरू होनी थी। रास्ते में रूकते हुए बाबा से बातें करते हुए कब पूरे दिन का सफ़र तय हो गया पता भी नहीं चला। पूरे दिन बाबा से बहुत सारी बातें हुई। बाबा ने बताया अध्यात्म का रास्ता केवल चार तरह के लोगों के लिए होता है:
– अति: जिनकी अति हो जाती है। जो खुद को बँधा हुआ महसूस करते हैं। जो इस जीवन से थक चुके हैं।
– जिज्ञासु: जिसने अध्यात्म के बारे में सुन लिया है। अब उसके अंदर जिज्ञासा पैदा हो गई है। वह जानना चाहता है, सीखना चाहता है।
– ज्ञानार्थी: जो ज्ञान पाना चाहता है।
– अर्थार्थी: जो अपने जीवन का सही अर्थ ढूँढना चाहता है।
बाबा ने बताया कि अध्यात्म के रास्ते पर चलते हुए हमें emotion और डर को छोड़ना पड़ता है। emotion इसलिए कि हम सोचते हैं कि उसका क्या होगा या फिर किसी बात को लेकर चिंता करते रहते हैं। पर हमें यह सोचना चाहिए कि जिस चीज़ या फिर इंसान को लेकर हम चिंतित हैं हम उसे इतना सक्षम बनाएँ कि वह अपना भला बुरा सोच सके क्योंकि ना तो हम किसी चीज़ से और ना किसी व्यक्ति से जीवन भर बँधे रह सकते हैं। दूसरा डर इसलिए छोड़ना है क्योंकि अध्यात्म का रास्ता सिर्फ़ सत्य का रास्ता है। जहाँ सिर्फ़ सत्य ही है वहाँ डर कैसा। क्योंकि सत्य हमारे अंदर वैराग्य पैदा करता है। वैराग्य तभी पैदा होता है जब भक्ति है। भक्ति है तो भक्त भी है और एक भक्त ही ज्ञान प्राप्त करता है। बाबा का दिया ज्ञान हमारे अंदर ऐसे स्थापित हो जाता है कि वह हमारे जीवन का मार्ग दर्शक बन जाता है। रात को भोजन उपरांत हम सब bonfire के लिए गए क्योंकि वहाँ बहुत ठंड थी। उस समय वहाँ का तापमान -4 डिग्री था।

इस लेख के अगले हिस्से में आगे की यात्रा सांझी करेंगे। ?

– Monica Singla