ॐ श्री गुरु चरणकमलेभ्यो नमः ?‍♀️??

तीसरा दिन (26 दिसम्बर) को सुबह हम गुफा के लिए पैदल निकले। बिलकुल हमारे होटल के सामने से ही गुफा के लिए पैदल रास्ता शुरू हो रहा था। रास्ते में हम अम्मा के पास रूके। बाबा जब भी गुफा की यात्रा करते हैं। हमेशा अम्मा के घर रूकते हैं। वहाँ हमने नाश्ता किया। अम्मा के प्रेम से बनाए खाने का स्वाद ऐसा था कि पेट तो भर जाता था पर मन नहीं भरता था। अम्मा के घर से हमने आगे की यात्रा शुरू की। प्रकृति भी बाबा का स्वागत अपने पूरे रंगों से कर रही थी। कहीं पर हमें इन्द्रधनुष के रंग दिख रहे थे और बादल भी छत्र बना कर पूरे रास्ते बाबा के संग चल रहे थे।4 किलोमीटर की पैदल यात्रा करने के बाद हम गुफा में पहुँचे। गुफा में ध्यान करने के बाद हमने वापसी की यात्रा शुरू की। वापिस आते हुए हम फिर से अम्मा के घर रुके। वहाँ हमने खाना खाया और होटल की तरफ़ रवाना हुए। हमेशा की तरह बाबा हमें जीवन जीने की कला सीखाते रहे। तब पता चला की हमारे जीवन में संग (मतलब संगति) कितना महत्वपूर्ण है। सही संग ही जीवन को सही दिशा दे सकता है। आप किसके साथ समय व्यतीत करते हैं, किसे सुनते हैं यह हमारी विचारधारा पर असर डालता है और विचारधारा से ही हम अपने जीवन में हर action लेते हैं। विचारधारा का भोजन सिर्फ़ बाहरी ही होता है। बाहर की दुनिया से जो हमने सुना, देखा उसी को हम सही मान बैठते हैं। मतलब हमारी सारी विचारधारा सीमित हो जाती है। क्योकि यह विचारधारा सिर्फ़ सूचना पर ही आधारित होती है, जो की हमें बाहरी दुनिया से मिलती है। इसका आधार ज्ञान नहीं होता। ज्ञान सिर्फ़ सही संग से ही पाया जा सका है। सही संग ही सत्संग बन सकता है। सत्संग का मतलब वह संग जो हमें सत्य की और ले जाए। सत्य की और हमें वही ले जा सकता है जिसने सत्य को पा लिया हो। वह एक सत्पुरुष ही हो सकता है। बाबा आपके चरणों में कोटि कोटि नमन हमारे जीवन को अपने ज्ञान द्वारा सही दिशा देने के लिए ?‍♀️

– Monica Singla