सबसे पहले मैं गुरूदेव के चरणों में प्रणाम करती हूँ। जिनके सानिध्य ने हमारे जीवन को सही राह दिखाई।?‍♀️?

यात्रा बाबा के संग, आंनद की यात्रा, शांति की यात्रा, ज्ञान की यात्रा, सानिध्य की यात्रा,प्रेम की यात्रा।
यात्रा का अर्थ ‘य’ है अग्नि , ा है अग्नि को बढ़ाना , ‘त’ है झुकना, प्रणाम करना , र है प्रकाश, ा है प्रकाश को बढ़ाना। जो – ज्ञान, शांति , आंनद , सानिध्य ,प्रेम की अग्नि को आपके अंदर बढ़ाए उसे पूरे अंतर्मन से प्रणाम है (पूरी तरह से समर्पित हैं) इसी से ही आपके ह्रदय में प्रकाश बढ़ता है। वहीं सम्पूर्ण यात्रा है।
हर बार की तरह बाबा के साथ जाना अपने आप में एक अलग एहसास होता है। बाबा के साथ इतने दिन बिताना वह भी एक शांत जगह पर जीवन की एक ऐसी याद बन जाता है कि याद आने पर ऐसा लगता है कि जैसे अभी भी वही पल जी रहे हैं।

हमारी यात्रा 24 दिसंबर को लुधियाना से शुरू हुई। इस बार हमारी यात्रा में बच्चे भी साथ थे। मन में एक दुविधा थी कि बच्चों के साथ इतनी ठंड में जाना है पर बाबा पर विश्वास था इसलिए होंसला बनाए हुए थे। इस बार बच्चों और बाबा का आपस में वादा हुआ था कि बाबा उन्हें बाबाजी की गुफा लेकर जाएँगे और बाबा अपने शब्दों के बहुत पक्के हैं। 24 दिसम्बर रात को हम शताब्दी से दिल्ली पहुँचे। हमेशा की तरह बाबा रात भर जाग कर हमें ज्ञान बाँटते रहे। बाबा ने बताया कैसे सही आहार से ही हम अपने जीवन को सही दिशा दे सकते हैं और आहार ही हमारे व्यवहार में झलकता है।सही व्यवहार ही जीवन जीने की कला है। आहार सिर्फ़ भोजन नहीं बल्कि सभी इन्द्रियों से ग्रहण किया गया आहार। जो हम सुन रहे हैं,जो हम देख रहे हैं, जिसके बारे में सोच रहे हैं, जिसके बारे में बात कर रहे हैं, जिससे मिल रहे हैं यह सब आहार का ही हिस्सा है। तभी तो कहते हैं जैसा अन्न वैसा मन। बस इसी तरह बाबा से बातें करते हुए कैसे रात बीत गई पता भी नहीं चला।

इस लेख के अगले हिस्से में आगे की यात्रा सांझी करूँगी। ?