“कोटि फला दरसन गुरु डीठे”
कृपा मांग से नहीं यद्यपि केवल तपस्या से ही प्राप्त की जा सकती है। इसका कोई और मार्ग नहीं। और तपस्या का मार्ग ज्ञान द्वारा खुलता है। और ज्ञान मात्र गुरु के सानिध्य और सामिप्य से प्राप्त होता है। और गुरु का जीवन में होना सरल है कहाँ!!बहुजन्मों के संचित कर्मों से गुरु का आगमन होता है और कोई सुदुर्लभ ही तपस्या मार्ग से गुरु कृपा प्राप्त करता है। जैसे, अर्जुन ने अपने पूर्वजन्म में नर रूप में नारायण के साथ गंध-मर्दन की पहाड़ियों में तपस्या की। और अगले जन्म में कृष्ण स्वयं उसके गुरु, भाई, सखा, मित्र और भगवान बन उसका मार्गदर्शन करने आए।।