विशब्देन स्मृतो हंसो नैर्मलयं शुद्धिरूचयते,अतः कंठे विशुद्धाख्यम चक्रं चक्रविदो विदुः।
‘वि’ शब्द से हंस का स्मरण और शुद्ध से निर्मल को कहते हैं। अतः कण्ठ में सर्वतोकृष्ट वि-शुद्धि चक्र है जोकि चक्रों के विद्वान जानते हैं।

गोरक्ष- संहिता ॐ