ॐ श्री गुरू चरणकमलेभ्यो नमः ?‍♀️?

चौथे दिन(27 दिसम्बर) को सुबह हमें पांडु खोली जाना था। जिसकी ऊँचाई 8800 फ़ीट है। सारा रास्ता पैदल तय करना था। पर 26 रात को मेरी तबीयत बहुत ख़राब हो गई। सुबह जब बाबा को कहा कि मैं नहीं जा पाऊँगी मेरी तबीयत बिलकुल ठीक नहीं है। बाबा चुप हो गए। मैंने फिर से कहा बाबा तबीयत सचमुच बहुत ख़राब है। मैं सोच भी नहीं सकती हूँ कि मैं इस हालत में इतनी चढ़ाई कर सकती हूँ। पर बाबा पता नहीं क्या देख रहे थे। उन्होंने बस इतना कहा आप तैयार हो जाओ। उनका कहना मेरे लिए बहुत बड़ी बात है अगर बाबा कह रहे हैं जाने के लिए तो इसका मतलब उन्हें मेरा ख़याल मेरे से ज़्यादा है। मैं भी तैयार हो गई और बाबा के साथ चल पड़ी। अम्मा के घर पर सबने नाश्ता किया। बाबा ने मुझसे कहा आप भी पराँठा खालों। मैंने कहा इसे खाने से मेरी तबीयत और भी ख़राब हो जाएगी। पर बाबा को ही पता था कि वो क्या देख रहे थे। मैंने भी नाश्ता कर लिया। अब हमने आगे की यात्रा शुरू की। बाबाजी की गुफा तक तो हम आराम से पहुँच गए पर उसके आगे की यात्रा बहुत मुश्किल थी। हमारे साथ कल्पना जी थी जो की थोड़ी बड़ी उम्र की और थोड़े भारी शरीर की हैं। उनके लिए यह यात्रा बहुत मुश्किल थी। पर उनका विश्वास इतना पक्का की वह बस यही कहती कि बाबा साथ में हैं तो कुछ भी मुश्किल नहीं है। सारे रास्ते हम थोड़ी दूर चलते फिर यही सोचते कल्पना जी कैसे चढ़ेगी। क्योंकि रास्ता बहुत मुश्किल था और वह बहुत धीरे धीरे चढ़ रही थी। उनकी मदद करने के लिए दो लोग उनके साथ ही आ रहे थे। हम उनसे थोड़ी आगे थे। बाबा भी थोड़ा चलते फिर कल्पना जी का इंतज़ार करते जब कल्पना जी वहाँ पहुँच जाती फिर आगे चल पड़ते। अब बाबा उनसे आगे निकल आए। जब हमने बाबा को देखा तो हमने पूछा बाबा कल्पना जी कैसे चढ़ेगी। तब बाबा बस यही कहते वह आ जाएगी। पर सच कहूँ यह हमारी समझ से बिल्कुल बाहर था क्योंकि रास्ते में कई बार ऐसा हुआ कि हम चढ़ने के बाद एक ही बात सोचते कि यह कल्पना जी नहीं चढ़ पाएँगी। एक जगह तो हमारे दिमाग़ ने बिलकुल काम करना बंद कर दिया क्योंकि हमें ढाईं फ़ीट ऊँचे पत्थर पर चढ़ना था और उसके आगे ढलान थी हम सब तो चढ़ गए पर कल्पना जी कैसे चढ़ेगी यह बिलकुल समझ नहीं आ रहा था। हम बाबा की तरफ़ देखते बाबा बस हंस देते। हम थोड़ी और आगे चले तो देखा कि वहाँ बहुत ज़्यादा snow थी। यह देखकर बच्चों की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा। जब से हमारी यात्रा शुरू हुई थी तब से बच्चे बाबा को बार बार यही कह रहे थे कि snow पड़ जाए। बाबा हमें snow देखनी है और snow में खेलना है। अब तो हम सब snow में खेलने लगे। बाबा भी बच्चों के साथ बच्चों की ही तरह खेलने लगे।
तब एक बात समझ में आई कि कैसे गुरू अपने शिष्यों की हर ख़ुशी का ध्यान रखते हैं। जब हम गुरू के सानिध्य में है और हमारा ध्यान पूरी तरह से उन्हीं पर केंद्रित है तब यह सब इच्छाएँ तो बहुत छोटी चीज़ होती हैं। क्योंकि गुरू तो हमें हर पल आत्मिक स्तर पर बढ़ाने की कोशिश में लगे होते है।
बाबा आपके चरणों में कोटि कोटि प्रणाम?‍♀️। हर पल हमें सानिध्य में रखने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद ?

इस लेख के अगले हिस्से में भाग 4 की आगे की यात्रा सांझी करूँगी। ?

-Monica Singla