ॐ श्री गुरू चरणकमलेभ्यो नमः ?‍♀️?

27 दिसम्बर की आगे की यात्रा:
हम सब snow में ख़ूब मस्ती कर रहे थे कि उसी समय कल्पना जी का फ़ोन आया कि बाबा मुझे लगता है मैं ऊपर नहीं आ पाऊँगी। तब बाबा ने कहा कि ठीक है फिर आप नीचे चले जाओ और हम सब को पता था उस समय नीचे जाना संभव नहीं था। कल्पना जी एक दम बोल उठीं बाबा मैं आ रही हूँ और उन्होंने वहीं से फ़ोन किया था जहाँ वह ऊँचा पत्थर था। हम सब फिर से snow में खेलने लगे।
मैं एक बात बार बार सोच रही थी कि बाबा इतने रास्ते तो कल्पना जी के साथ आ रहे थे पर एक दम से आगे क्यों आ गए। तब समझ आई कि गुरू अपने शिष्य को वही छोड़ता है जहाँ से वापसी का रास्ता ना हो सिर्फ़ आगे बढ़ने का ही रास्ता हो। जहाँ पर अब शिष्य को साहस से आगे बढ़ने की ज़रूरत है, डर को छोड़ने की ज़रूरत है, केंद्रित होकर आगे बढ़ने की ज़रूरत है। गुरू अपने शिष्य का कभी हाथ नहीं छोड़ते पर अपने शिष्य को आत्मनिर्भर बनाना चाहते हैं। वह तो बस यही चाहते हैं कि अगर उनके शिष्य के जीवन में कोई भी मुश्किल स्थिति परिस्थिति आए वह सहज रूप से उसमें से निकलने के लिए तैयार हो जाए। क्योंकि यह जीवन की यात्रा हर किसी की अकेले की ही होती है। उसे हमें ही अकेले ही तय करना है। जीवन की यात्रा तय करने के लिए हमें ज्ञान की ज़रूरत होती है और वह ज्ञान हमें सतगुरू द्वारा ही मिल सकता है।यहाँ जीवन की यात्रा तय करने का मतलब हमें आत्मिक स्तर पर बढ़ना है और आत्मिक स्तर पर बढ़ना मतलब हमारा हर कर्म ऐसा हो जो की हमें परमेश्वर की तरफ़ ले जाए।
बाक़ी सब लोग भी हमारे साथ पहुँच गए थे। उनके मन में अलग ही ख़ुशी का एहसास था। अब हम सब आगे की यात्रा तय करके पांडु खोली पहुँचे। वहाँ बहुत ठंड थी। उस समय वहाँ का तापमान -6 डिग्री था। सबने वहाँ जाकर भोजन किया। बाबा के कहने पर मैंने भी भोजन किया। भोजन करने के उपरांत जब हम वहाँ से बाहर आए तो वहाँ का निशा काल का दृश्य बहुत ही लुभावना था। सूर्य अस्त के समय इतना बड़ा इन्द्रधनुष मैंने पहले कभी नहीं देखा था। इतने सुंदर रंग और साफ़ रंग मैंने पहले कभी आकाश में नहीं देखे थे। बाबा के साथ जाना मतलब जीवन में नए रंगों को भरना। हम वहाँ थोड़ी देर रूके और वापिस चल पड़े। रात बहुत हो गई थी कल्पना जी के लिए वापसी का रास्ता तय करना बहुत मुश्किल था इसलिए कल्पना जी और राजन ऊपर ही रूक गए। वापिस आते हुए काफ़ी अंधेरा हो चुका था। हमने सारा रास्ता टोरच की रोशनी में तय किया। हम सबने होटल में भोजन करने के उपरांत बाबा के साथ समय व्यतीत किया।
मैं सोच भी नहीं सकती थी कि सुबह मेरी तबीयत इतनी ख़राब और मैं यह यात्रा कर भी पाऊँगी। पर बाबा को पता था कि यह यात्रा मेरे लिए कितनी ज़रूरी है।अगर मैं इस यात्रा पर ना जाती तो अपने जीवन में इस ज्ञान को कैसे सीखती कि
– गुरू के कहे हर शब्द का कोई ना कोई मतलब ज़रूर होता है शायद वह हमें उस समय समझ नहीं आता।
– जब हम गुरू के साथ यात्रा पर जाते हैं तो हमारी यात्रा कभी अधूरी नहीं रहती बस हमें गुरू के साथ चलना होता है।
– गुरू कृपा का अनुभव गुरू के सानिध्य में रहकर ही किया जा सकता है।
– गुरू के साथ की गई यात्रा हमारे जीवन को नए आयाम पर ले जाती है।

बाबा आपके चरणों में कोटि कोटि प्रणाम ?‍♀️ मुझे हर पल सानिध्य प्रदान करने के लिए।

इस लेख के अगले हिस्से में आगे की यात्रा सांझी करूँगी। ?

-Monica Singla