सोम, चंद्र, मन…पउरुणिमा, सोम का पूर्ण स्वरूप…सोम पान, मंथन द्वारा सोम की उत्पत्ति…

माखन…दुग्ध के मंथन से उतपन्न वाला… ठीक उसी तरह जैसे क्षीर-सागर के मंथन से सोम/अमृत की उत्पत्ति हुई…

मदिरा पान असुरों ने किया और मद में खो गए… यद्दपि सोम पान देवताओं ने किया और अमृत्व प्राप्त किया… उसी अमृत्व के कारण, इस युग में और अनन्य युगों से, असुरों ने देवताओं को प्रलोभित कर इसी जगत में व्यस्त कर स्वयं के अधीन कर लिया… जिससे देवता (प्रकाशवान जीवात्माएं) इसी पार्थिव जगत में फँस गई…

सोम का सही प्रयोग मन में जागरूकता द्वारा प्रकाश उत्पन्न करता है और जागरूकता से जागृति की और पूर्ण चंद्र की तरह सोलह कलाओं से परिपूर्ण करने वाला होता है…

ॐ…