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सत्य ताकतवर है, सत्य साहस प्रदान करने वाला है और, समस्त भय और अंधकार का नाश करने वाला…सत्य अ-सुर को सुर करने वाला है और र-क्षसों के खड़े किए साम्राज्यों को पूर्णतः विध्वंस करने वाला है…सत्य ही काल रूप होकर सत्य-नारायण द्वारा समस्त आसुरी और रक्षसी शक्तियों का संहार करने वाला है…

पिछले पाँच सौ वर्षों से अ-सुरों और र-क्षसों ने अपना साम्राज्य पूरे भारत-वर्ष पर स्थापित किया…सारे सुरों, देवताओं और असुरों से मिश्रित जन-संख्या वृद्धि की…फिर, उस पूरी मिश्रित जन-संख्या को नियंत्रित करने के लिए सम्पूर्ण भारत-वर्ष का विभाजन किया, विभिन्न देश बनाए, कागज़ी मुद्रा बनाई और जीवात्माओं को पुनः पुनः इसी पार्थिव बंदीगृह में गिरते रहने के लिए विवश किया…

जीवात्मायों (spirit beings), मिश्रित जीवों (mixed race beings) और कृत्रिम जीवों (androids/artificial beings) को एक समान दिखाने के लिए समान नियम, समान व्यवस्था और कानून लागू किये गए… जिससे जीवात्माएं सामूहिक सम्मोहन द्वारा इसी व्यवस्था में पूर्ण रूप से लाचार हो गए और अपना इन्द्रिय नियंत्रण भी खो बैठी… सोम धन, ज्ञान धन और काल धन तीनों पर से उनका स्वयं का नियंत्रण छूट गया और केवल असुरों और रक्षसों की बनाई गयी व्यवस्था के पूर्ण गुलाम बन गए…

पर समझने की बात यह है कि सत्य इतना प्रबल, तेजोमय है और अटल है कि असुरों और रक्षसों को इतनी बड़ी व्यवस्था स्थापित करनी पड़ी केवल देवताओं (light beings) और जीवात्मायों को अपने अधीन करने के लिए और पृथ्वी पर अपना साम्राज्य स्थापित करने के लिए… इसका अर्थ यह है कि देवताओं और जीवात्माओं को दास बनाना सरल नहीं और दास बनाने के लिए उनका सोम, ज्ञान और जीवन समय व्यर्थ करने की व्यवस्था बनानी है…

और, देवता चकाचौंध में और अस्थाई आनंदों के पीछे इस पूरी व्यवस्था के गुलाम हुए…और, असुरों और रक्षसों ने मिलकर पूर्ण रूप से पाँच सौ से अधिक वर्षों तक अपने इस पार्थिव साम्राज्य को भोगा…

परन्तु, सत्य की सदा जीत होती है और इसी व्यवस्था को और गंभीर रूप से स्थापित करने के लिए राक्षसी ताकतों ने नई उक्ति लगाई है कि पूरी जनसंख्या को नियंत्रित किया जाए और देवताओं और जीवत्माओं को सदा के लिए अपना गुलाम बना लिया जाए और सभी कृत्रिम जीवों को भी समाप्त कर दिया जाए…

सत्य समक्ष है, स्पष्ट है और चुनाव की बारी है, स्वयं का सत्य चुनने की बारी है…समय आ गया है जब सात्विक और तामसी शक्तियों का युद्ध प्रारम्भ हो रहा है…जो जिस ओर है, उस पर वैसा ही अधिनियम लागू होगा और उसका जीवन निर्णय भी वैसा ही होगा…

“सत्यमेव जयते नानृतं सत्येन पन्था विततो देवयानः ।
येनाक्रमन्त्यृषयो ह्याप्तकामा यत्र तत् सत्यस्य परमं निधानम्।।
truth alone triumphs…not falsehood, through truth the divine path is spread out, by which the sages whose desires have been completely fulfilled, reach to where is that supreme treasure of truth…
केवल सत्य की ही विजय होती है … असत्य की नहीं, सत्य के माध्यम से दिव्य मार्ग फैलता है, जिसके द्वारा वह ऋषि जिनकी इच्छाएँ पूर्ण हो चुकी हैं, उस तक पहुंचते हैं जहां सत्य का सर्वोच्च खज़ाना है…

-मुंडका उपनिषद”