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सभी जीवात्माओं को सर्व प्रथम ये स्थिरता से समझ लेना होगा कि ये पृथ्वी जगत मृत्यु लोक है और यहां सब व्यक्तित्व और वस्तुएँ अस्थाई हैं…इसलिये, इस पार्थिव (पृथ्वी) जगत के सत्य जान कर और नियमित अभ्यास रत होकर ही यहाँ से मउक्त होना संभव है…

आज पृथ्वी पर जो स्थिति है जबकि सब जीवात्माएं विषाणु से भयभीत हैं और गुलामी में नियंत्रित रखने वाले सत्ताधारियों के षड्यंत्र में जीवात्माएं बुरे तरीके से फंस चुकी हैं और उससे बाहर निकलने के कोई विरला ही मार्ग खोज रहा है, यद्दपि अधिकांश लोग मात्र एक दूसरे के सामने शोर मचाने, दूसरों को सचेत करने में और व्यस्त होते चले जा रहे हैं…ये समझने का विषय है…

मानिये आप के बड़े हॉल कमरे में कई लोगों के साथ बंद हैं और वहां कुछ लोगों ने मिलकर अधिकतर लोगों को नियंत्रित करके, उनका ध्यान भी हॉल से बाहर जाने के द्वार से हटा दिया, कुछ को आँखें बंद कर बिठा दिया गया, कुछ को कागज़ इकट्ठे करने में व्यस्त कर दिया गया और कागज़ इकट्ठे करने के लिए कुछ लोगों से कुछ काम सीखने में लगा दिया गया, कुछ को स्वयं और स्वयं की देह के बारे में ही सोचने में लगा दिया गया, परन्तु कुछ लोगों का ध्यान इन व्यस्तताओं से हटा और वे उस हॉल से बाहर निकलने के बारे में सोचने लगे…

और इतने में क्योंकि अधिकतर लोग ग़ुलाम हो चुके थे तो सत्ताधारियों ने पूर्ण गुलामी और लोगों में कटौती के बारे में व्यवस्था बनाई…और जो लोग बाहर जाने के बारे में सोच रहे थे वे भी उसी हॉल में बैठे बैठे दूसरों को सचेत करने के लिए शोर मचाने लगे और सोचने लगे शायद इस से सब जाग जाएं और इस नई व्यवस्था का कोई हल निकल आये…और इस सब के बीच उनका ध्यान द्वार से फिर हट गया और वह उसी हॉल के नकली अधिनियमों के अंतर्गत ही जैसा सत्ताधारी चाहते थे, वैसे ही करते गए…

और, उसी हॉल में ही शोर मचाते रहे और क़ैद रहे, बंदी बने रहे…क्यूंकि द्वार की खोज स्वयं के व्यवहार, आचरण और ब्रह्मांडीय नियमों से होकर जाता है, इसके इलावा और कोई रास्ता नहीं…क्योंकि हॉल के बाहर जाने का द्वार इसीसे खुलता है…और नियम वही अपना सकता है जो स्वयं का भला चाहता हो… जो स्व-अर्थी हो…

इसीलिये एक पूरा जन्म काल मिलता है और जिसने जन्म काल रहते स्वयं को उत्तम बना लिया, वही इस पार्थिव मृत्यु-लोक रूपी नरक (हॉल) से मउक्ति पा सकता है… अन्यथा, ये मात्र छद्मावरण ही है कि इस लोक में कुछ भी करके अकर्म-फल से बचा जा सकता है और बाहर निकला जा सकता है…