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ग्रह मंडल के ज्ञान को तट किनारा मान,
ब्रह्म ज्ञान विशाल है जो डूबा सो जान।।

धर्म खंड से ज्ञान खंड, ज्ञान खंड से श्रम खंड, श्रम खंड से कर्म खंड और कर्म खंड से सच खंड, जीवन की यात्रा चलती जा रही है। और आगे धर्म से सच ओर अग्रसर है। जीवन में विधि-विधान को अपनाने पर ही व्यक्ति धार्मिक कहा जा सकता है। धर्म का अर्थ ही जीवन में नियम को अपनाना ही। धर्मं जीवन जीने का तौर तरीका, ढंग बताता है। जो व्यक्ति नियम को जीवन में लाये वही धार्मिक। फिर ऐसा कहा जा सकता है कि जीवन को इस शैली में जीना मेरा धर्म है, क्यूंकि नियम अपना लिया गया है। धर्म के बाद, नियम के बाद ही ज्ञान खंड आरम्भ होता है।
ज्ञान का प्रकाश होते ही ये स्पष्ट हो जाता है कि ग्रह मंडल, ये चाँद, सितारे, सूर्य, नक्षत्र कैसे नियम से चल रहे हैं। किस अवस्था में ये धरती पर जनजीवन को प्रभावित करते हैं। कैसे सूर्य की भाँति करोडो और सूर्य, चंद्र, नक्षत्र, सितारे ब्रह्माण्ड में बिखरे पड़े हैं और सब का प्रभाव पृथ्वी पर कैसे घट रहा है। परंतु ज्ञान खंड भ्रमित होने का खंड भी है क्योंकि ज्ञान की वृद्धि बुद्धि और मन पर टिकी है। ज्ञान खंड अज्ञानता से प्रकाश का पथ है। आध्यात्मिक जीवन में ये जान लेना अति आवश्यक है कि ग्रह मंडल के ज्ञान की समझ आने पर, चित्त वृत्तियों के प्रति सजग रहे। ये ज्ञान भी संपूर्ण नहीं। अधूरा है। सिर्फ किनारा है इस विशाल, महान, प्रचंड सागर का। ऊर्जा के नियम ग्रह मंडल से परे हैं।
ऐसा देखने में आता है कि ग्रह मंडल के शास्त्र का ज्ञान भी बिना साधना अधूरा है, विखंडित है, विभाजित है। इसे संपूर्ण मान लेने से सिर्फ यही भाव है जैसे सागर किनारे खड़े होकर भी प्यासे लौट आये। पी भी तो सिर्फ एक बूँद। बुद्धि से मन और मन से चित्त और चित्त से चैतन्य की प्राप्ति न हो पायी। लक्ष्य से अभी कोसों दूर खड़े रह गए। यात्रा शुरू की और अंत कर लिया क्यूंकि मान बैठे की सब यही है। यही पूर्ण ज्ञान है। यही सब घटित कर रहे हैं। व्यक्तिगत यात्रा है ज्योतिष शास्त्र के ज्ञान का जीवन में आना और जीवन पगडंडियों पर ज्ञान अर्जित करना। यदि ग्रह मंडल का ज्ञान भी तुम्हे बुद्धि से ऊपर नहीं उठा पाता और अभी भी गणनाओं में उलझे हो तो जान लो कि उस आनंद सागर से अछूते रह गए। और सफ़र अभी जारी रहेगा।

प्रेम और आनंद,
विशाल ???