कलियुग खेल रचाया माया,
मन पर कलि का परदा छाया,
अलख अनोखा सतगुरु जग में,
उठकर आन रचाया।
देखो खेल माया कलियुग का,
जिन पाया, तिन ही पाकर गंवाया।
कलियुग खेल रचाया माया,
मन पर कलि का परदा छाया,
मन उलझाया तन अग्नि में,
बस मोह माँग में ही फँसाया।
गुरु पाए ते सब किछ जान्या,
पर क्यूँ मन वेग न काबू आया।
कलियुग खेल रचाया माया,
मन पर कलि का परदा छाया,
ज्ञान सत्य सब त्यागे मूरख,
फिर माया ने फांस सजाया।
तिल तिल मरता जीवन जाए,
गुरु पल पल आन जगाया।
कलियुग खेल रचाया माया,
मन पर कलि का परदा छाया,
अंध मूढ़ अज्ञानी सोचे,
छोड़ गुरु को, इसमें क्या तृप्ति पाया,
अंतकाल जब देह को छोड़ा,
काल के हाथ फँस, मूरख फिर पछताया।
कलियुग खेल रचाया माया,
मन पर कलि का परदा छाया,
विरला जाने गुरु कृपा को, विरला जाने गुरु प्रेम को,
औऱ कृपा हुए ते ही सब जाने, औऱ समझे ये संसार की माया।
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chandana gopalani
shivani
aruna ravi