✨❤ मैं अर्जुन मेरी आत्मा कान्हा ✨❤
आज सब जगह कृष्ण जन्मोत्सव की लहर है। मन प्रफुल्लित है इस आनंदोत्सव को देख कर, परंतु कृष्ण चाहिए किसे! किसे कृष्ण के सन्देश को अपने जीवन में उतारना है! जिस के भीतर स्वयं को जानने की जिज्ञासा न पैदा हुई हो, जो परम तत्व को न जानना चाहता हो, जो अपने जीवन में प्रेम और अनान्द का रस न भरना चाहता हो; उसके लिए कृष्ण के जन्म के क्या मायने हैं। बस एक मामूली त्यौहार आया और गया। उसी तरह जैसे कृष्ण आये और अपनी जीवन यात्रा पूरी करके चले गए।

कृष्ण आत्मा है, जो अपने परम् रूप में है परंतु फिर भी रथवान के रूप में अर्जुन रूप जीव को जीवन का संदेश दे रहे हैं। कैसे जीवन के युद्ध में विजयी होने है, कैसे मन और इन्द्रियों से पैदा हुई विकृतियों से मुक्त होना है। ऐसा सन्देश दे रहे हैं। परंतु इसे समझने के लिए और जीवन शिक्षा बनाने के लिए स्वयं अर्जुन बनना पड़ेगा। अर्जुन जितनी ही सत्य को उपलब्ध होने की प्यास पैदा करनी पड़ेगी। उस से कम में समतल न बन पाएगा और न ही कृष्ण का गीत समझ आयेगा। कृष्ण की कही गीता तभी सार्थक है यद्दपि स्वयं में स्वयं के सत्य को पाने का बीज ही हो। कृष्ण के वचन तुम्हारे ही सत्य को पाने का मार्ग हैं। तुम्हारा सत्य ही दिखा रहे हैं परंतु उस आनन्द को प्राप्त कौन करना चाहता है, क्योंकि तुम तो एक दिन का त्यौहार मनाकर ही तृप्त हो। बस गाना, बजाना, और कृष्ण के समक्ष अपनी मांग-सूची की प्रस्तुति; यही अर्थ हैं आज की जन्माष्टमी के। जन्माष्टमी अधिकतम वो लोग मना रहे हैं जिन्होंने न कृष्ण को जाना और न कृष्ण के वचनों को। बस सतही त्यौहार।

जन्माष्टमी का दिन गया, कृष्ण फिर कहीं लुप्त हो जायेंगे और तुम भी उसी जीवन की व्यस्तताओं में खो जाओगे। जन्माष्टमी अवसर है, पूर्णवतार कृष्ण की शिक्षाओं को पुनः स्मरण करने का ताकि उनके जीवन की तरह तुम्हारा जीवन भी आनंद से परिपूर्ण हो उठे, और तुम भी अर्जुन बन अपने सत्य को जना पायो और जीवन के कुरुक्षेत्र में प्रेमपूर्ण लीलाएं खेलते हुए कृष्ण हो सको।

शुभ जन्माष्टमी?