प्रत्याहार का अर्थ है पीछे खींचना या हटाना…प्रत्याहार, प्रत्यय और आहार से बनता है…

प्रत्यय का अर्थ है दृढ़ और आहार का अर्थ है पूर्ण भोजन जिसमें देह और इंद्रिय दोनों का भोजन समिल्लित है…

इसलिए, प्रत्याहार का अर्थ है दृढ़ भोजन, दृढ़ आहार…और जो उस आहार से द्वेष या भेद पैदा करे उस वस्तु-व्यक्ति-विषय से स्वयं को हटा लेना और पुनः केंद्र पर लौट आना…

तो प्रत्याहार तभी हो सकता है जब आपका कोई केंद्र हो, उस केंद्र के साथ योग हो, जुड़े हों…अथवा, आप विषयों से तो पीछे हटे परंतु लौटना किस केंद्र पर है, ये पता नहीं…

यही अवस्था और व्यवस्था है आज के अध्यात्म की…पूर्णतः केन्द्रित और योग-भ्रष्ट… एक अध्यापक से दूसरे, एक किताब से दूसरी पर, चैनल से चैनल पर, कोर्स से कोर्स तक…यही अध्यात्म रह गया आज की सांसारिक व्यवस्था में…

स्मरण रहे- केवल केंद्रित योगी ही प्रत्याहार कर सकता है… जिसका केंद्र नहीं उसका क्या प्रत्याहार… और केंद्र उपलब्ध होना चाहिए नकि चित्र में दर्शन या समूह के कारण दूरी हो…

और ऐसे प्रत्याहार का कोई लाभ नहीं… इसीलिये पहले नियम और देह का आसन, प्रत्याहार उसके बाद…

“हरि जैसा हीरा छोड़ कर मनुष्य स्वयं के पार जाने की आशा रखे बैठता है, परन्तु संत रैदास कहते हैं कि ऐसे सब नर यमपुर ही जाएंगे”