देवासुर संग्राम इस पृथ्वी के पटल पर होता ही आया है बस युग परिवर्तन से प्रारूप बदल गए। पृथ्वी पर कई वर्ष अर्थात भू-खंड हैं और हम भारतवर्ष यानी भारत खंड है जिसका अर्थ है कि पूरी पृथ्वी का भू-खंड और सारे वर्ष एक साथ मिलकर पूर्ण भू- मंडल हैं…

ये असुरों, दैत्यों और राक्षसों (non- spirit beings & dark beings) की शक्ति बढ़ जाने और देवताओं (light beings) की शक्ति घटने, मात्र क्षणिक वासनाओं की तृप्ति की पूर्ति में ही आजीवन व्यस्त रहने और आसुरी शक्तियों को गलत शिक्षाओं के कारण इन्हीं वासनाओं को ही जीवन समझने लगे और सोम पान (immortal nectar) भूलकर मदिरा पान, स्त्री सुख, धन और समपत्ति को ही समृद्धि मानने लगे…

इस युग में यह पूर्णतः स्पष्ट है कि जिस प्रकार सागर मंथन के समय हुआ और असुरों को मूर्छित कर सोमपान से रोक दिया गया, उसी प्रकार आज उसका उल्टा हुआ। आसुरी ताकतों ने सदियों तक देवताओं को दुर्व्यवहार सिखा और मूर्छित कर देवताओं को सोम पान से वंछित कर दिया क्योंकि देवताओं के पूर्ण सुषुप्ति की अवस्था होने के कारण कोई भी विद्या नहीं रही और वे मात्र असुरों के दिये प्रलोभनों के दास बने रहे क्योंकि देवताओं ने भोग- विलास को चुना न कि परम् पिता परमेश्वर को…

यही नहीं परन्तु देवता आसुरी और राक्षसी पद्धति को ही पूजा मानने लगे और उसी पद्धति से राक्षस- राज की पूजा अर्चना करने लगे, जिससे असुरों और राक्षसों की ताकत में और वृद्धि हुई। और राक्षसों ने छल से अपना पूरा साम्राज्य खड़ा कर लिया। उनकी मुद्राएं, उनकी बनाई शिक्षा पद्धति, उनके बनाये व्यवसाय, उनकी भाषा और उनकी ही सब को नियंत्रित करने की व्यवस्था। छल से देवताओं को परम् पिता परमेश्वर से इतना दूर कर दिया गया कि देवता परम् ऐश्वर्यशाली परमेश्वर को भी भ्रांति कहने लगे, निद्रा वश और आसक्ति वश अपनी विद्याओं को झूठ मानने लगे और प्रकृति से भी पूर्णतः दूर हो गए…

आज देवासुर संग्राम चर्म सीमा पर है जब राक्षस और असुर मिलकर देवताओं पर अपना पूर्ण आधिपत्य बनाने में सक्षम हो रहे हैं। क्योंकि आज के देवता विद्याहीन, गुणहीन, मद- प्रमाद- अहंकार से भरे हुए, अपने अविद्या- अज्ञान को विद्या मानने वाले, आसुरी व्यवस्था पर पूर्णतः निर्भर और ईश्वर- परमेश्वर की कृपा से कोसों दूर…

न रा-जन और न प्र-जा, यहाँ तक कि आसुरी व्यवस्था के अधीन इस युग के गुरु भी दुष्ट हो गए, सिहांसनों पर विराजमान हो सरकारों से मिल गए, भोजन बाँटना और मूलभूत व्यवस्था भी कर (tax) के माध्यम से जनता से ही चूसने लगे, शिष्य दुर्बल हो गए और पूरी व्यवस्था आसुरी विकृतियों से भर गई। सब ओर अंधकार, भुखमरी, असुरों द्वारा फैलाई गई महा-मारी, गरीबी, दुख, संताप, द्वेष, लूट और देवताओं को नियंत्रण में रखने के नए ढंग और ढोंग…

अब तो प्रकृति भी क्रोधित है। भूकंप, बाढ़, अत्यंत वर्षा, तूफान, टिड्डों का हमला, चक्रवात, ज्वालामुखी का फटना इत्यादि, प्रकृति इतने संकेत दे चुकी परंतु असुर मात्र मीडिया और प्रोग्राम के माध्यम से समस्त मानव जाति को केवल महामारी पर केंद्रित रखना चाहते हैं…

स्मरण रहे- सोये हुई, मद में खोए हुई, घरों में दुबक कर बैठे हुए कभी भी देव-असुर युद्ध में देवता विजय नहीं हो सकते…सब को मिलकर एक साथ हो कर कृपा के पात्र बनना होगा ताकि हम अपने स्त्रोत, अपने केंद्र और बने हुए, इस युद्ध को एकाएक यहीं रोक सकें, हम पुनः विद्या को प्राप्त करने वाले हों, सोम को भीतर पान करने वाले हों, सब भ्रांतियों को दूर कर युद्ध में विजय प्राप्त करने वाले हों…

जो जागत हैं सो पावत हैं, जो सोवत हैं सो खोवत हैं…