Journey of a spirit being:
poor attitude, ego, wrong behavior, not following diVine laws—-> being falls on this earth plane to learn —-> being gets more trapped in the worldly possessions & attachments—-> beings undergoes pain, torture, sorrow, disease at all levels for many births—-> being shows interest to come out of it—–> again falls in the hands of wrong gurus & is lost in the crowds—-> then, beings goes inside and is willing to change—-> being learns the right behavior as per diVine laws—-> journey begins and being ascends with diVine grace
जिनके पास दिव्य भाषा है, उनके पास भाव हो सकता है। और उसी भाव में भगवत्ता के दर्शन होते हैं।
कुछ भी बोलना भाषा नहीं। दिव्य शब्दों का वाणी से उच्चारण ही भाषा है अन्य सब मात्र शोर है।
दिव्य शब्दों से तात्पर्य है कि परम् पिता परमेश्वर के, दिव्य पुरुषों के और प्रकृति के दिव्य गुणों की महिमा वाणी से कही जाए।
यही अभ्यास शिष्य के व्यवहार को दिव्यता के समन्वय में लाता है।
“जा को अपुनी किरपा धारे, सो तन रसना नाम उचारे”
“कर किरपा तेरे गुण गांवां”
“से सिमरे जिन आप सिमराये, नानक ताके लागो पाए”