कृष्ण इस संसार को दुःखालय कहते हैं, अनित्य जगत कहते हैं…मीरा इसे कंटक दुनिया, काँटों से भरी दुनिया कहती है… कबीर इसे भवजल कहकर यहाँ वापिस न आने के लिए परमात्मा से इस बार सब गलतियों के लिये बख्शने को कहते हैं और बाईबल इस दुनिया के लोगों को अंधा और इस संसार को काल-कोठरी बताती है, जेल बताती है…
परन्तु, आज के लोग इस संसार को खुशहाल मान बैठे हैं…पूरी वैश्विक व्यवस्था ने उन्हें ये मानने के लिये बचपन से ही तैयार किया है कि ये दुनिया बहुत खूबसूरत, मज़ेदार और सम्पूर्ण है…
यद्दपि हर पौराणिक कथा में जिस किसी ने भी कोई भी गल्ती की या दुर्व्यवहार किया, उसे सदा मृत्युलोक अर्थात पृथ्वी लोक पर आने का दंड दिया गया, इसलिए रीढ़ को मेरु-दंड कहा जाता है…
परन्तु, आसुरी व्यवस्था ने सब दैवी जीवों को यहीं इसी पृथ्वी जगत में रहने के लिए विभिन्न प्रलोभन दे कर, यहीं रहने के लायक बना दिया, जिससे दैवी जीवों के डी एन ए में से उनकी पूर्ण स्मृति खो गई और वह पूर्ण रूप से इसी सांसरिक व्यवस्था के दास बन गए… प्रकृति के भेद भूल गए, भगवद-ज्ञान भूल गए, परम्-तत्व को भूल गए और बस यहीं फंस गए…इसी व्यवस्था के संचालन में ही व्यस्त हो गए…
जबकि यह संसार जेल है और बंदी को बंदी जैसा व्यवहार करना चाहिये नकि यहाँ किसी व्यक्ति या वस्तु का स्वामित्व होने का…परंतु, अहंकार के प्रमाद में बंदी को आज न तो बंदीगृह का पता है और न ही बंदीगृह से छूटने के किसी प्र-योजन का…
कृष्ण, मीरा, नानक, कबीर, बाइबल…सब व्यर्थ…